विज्ञान से ध्यान तक की यात्रा

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बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष
बीबीएन,सोनीपत, 12 मई । बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर दीपालपुर गांव स्थित रजनीश ध्यान मंदिर में आयोजित आध्यात्मिक सभा में शैलेंद्र सरस्वती और अमृत प्रिया ने ओशो की अनूठी दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए विज्ञान और ध्यान के अद्भुत संगम की व्याख्या की।
सभा में वक्ताओं ने सवाल उठाया कि जब भगवान बुद्ध ने ढाई हजार वर्ष पूर्व अंतस में गूंजती ओंकार की अनुभूति की, जब वैदिक ऋषियों ने अनहद नाद को सुना — और जब ओशो ने इसी शाश्वत प्रकाश को अपने भीतर जाना — तो क्या अध्यात्म के खोजी भविष्य में भी इसी सत्य को जानेंगे?
विज्ञान के संदर्भ में उन्होंने बताया कि कैसे ब्रह्मांड में एक बार निकली रोशनी की किरण — फोटॉन — बिना रुके अनंत तक चलती है। उसका कोई वजन नहीं, कोई घर्षण नहीं, और न ही उसे समय का कोई अहसास। 13 अरब वर्ष पूर्व चले फोटॉन्स आज भी पृथ्वी पर पहुंच रहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह “ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत” का प्रमाण है — और ओशो इसे चेतना की अनंतता से जोड़ते हैं।
ओशो के विचारों को उद्धृत करते हुए श्रोताओं को बताया गया कि जैसे फोटॉन को समय नहीं छूता, वैसे ही ध्यान की स्थिति में मनुष्य भी “टाइमलेस” हो जाता है — केवल वर्तमान में जीता है। ओशो कहते हैं, “Time is a creation of the mind. In ultimate reality, there is only now.” इस मौके पर पांच ध्यानचरण भी बताए गए जिन्हें ओशो की शैली में विज्ञान से ध्यान की यात्रा के पड़ाव माना गया: ध्यान, साक्षी भाव, विचारमुक्ति, अब में रहना, और अनुभव के पार जाना।

सभा के अंत में यह संदेश गूंजा — जब मन शांत हो जाता है, तो व्यक्ति भी फोटॉन की भांति शाश्वत चेतना का भाग बन जाता है — नश्वरता की सीमाएं टूट जाती हैं और अस्तित्व का द्वार खुल जाता है।
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