सिन्धु: स्मृति, अस्मिता अनि सांस्कृतिक पुनर्स्थापन जी एक पुकार

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बीबीएन नेटवर्क, 7 जून। सिन्धु नदी जे किनारे आयोजित सिन्धु दर्शन महोत्सव सिर्फ़ एक सांस्कृतिक आयोजन नहिं रहेो, परन्तु इहो आयोजन स्मृति अनि अस्मिता जी पुनः प्रस्तुति जो मंच बनि विठो, जिन जी जड़ भारतीय उपमहाद्वीप जी सभ्यता में गह्री विठलिआ आहिं।
महोत्सव में प्रज्ञा प्रवाह जे उत्तर क्षेत्र संयोजक चंद्रकांत जी चवायो त “सिन्धु केवल एक जलधारा नहिं पर एक जीवंत सांस्कृतिक पहचान जी निशानी आहे।” हुन चवायो — “असीं सभ सिन्धु जा बिन्दु आहूं, इहि लाए असीं हिन्दू आहूं। इयो आयोजन असां जी ऐतिहासिक चेतना अनि सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता जी यादगिरी आहे।”
हिन वक्तव्य मार्फत जिथे एक पसे धार्मिक आस्था अनि सांस्कृतिक गौरव जो पुनर्मूल्यांकन कयो वयो, ओतहि हिक नवो संवाद भी सामुं आयो त असां जी असली पहचान जी पुनर्रचना सिर्फ़ प्रतीकन जी याद नाल नहिं, पर हिन जी सरंक्षण अनि सार्वजनिक संवाद सुइं ही संभव थी सगे थी। महोत्सव जी शुरुवात वैदिक हवन अनि पवित्र सिन्धु स्नान सुइं थी। भारतीय विद्या निकेतन जी छात्राअं जो स्वागत गीत अनि मध्यप्रदेश सिन्धी साहित्य अकादमी व स्थानीय कलाकारन जी प्रस्तुतिउं हिन आयोजन के लोकसंस्कृति अनि परंपरा सुइं जोड़िन में मददगार रही।
लद्दाख पुलिस बैंड जा देशभक्ति गीत, जे आयोजन के ऊर्जा अति, ते दो बालकन जो उपनयन संस्कार धार्मिक परंपरा के नवें सन्दर्भ में सामुं ल्यायो। विशिष्ट अतिथि डॉ. पदमा गुरमीत पर्यावरण विषय ते वक्तव्य दिँदिउं चवायो — “नदी सिर्फ़ भूगोल नहिं, पर भविष्य जी जिम्मेदारी आहे।” हिन वक्तव्य आयोजन के समकालीन सामाजिक सन्दर्भ में भी स्थान दिओ।
भारतीय सिन्धू सभा जे राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष राजेश वाधवानी चवायो — “सिन्धु किनारो आत्मीयता जो स्थल आहे — जिठे श्रद्धा अनि स्मृति दोनूं मिलन थियन।” कार्यक्रम में लद्दाख कल्याण संघ जे संगठन मंत्री बलविंदर सिंह, भारतीय सिन्धू सभा जे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घनश्यामदास देवनानी अनि अन्य सामाजिक कार्यकर्ता शरीक रहा। कार्यक्रम जे संचालन गौरव संतवानी कयो अनि आभार प्रदर्शन मुकेश लखवानी द्वारा कयो वयो।


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