ईद-उल-अजहा: बीकानेर में शांति, साझी संस्कृति और कुर्बानी का पैग़ाम

ईद-उल-अजहा: बीकानेर में शांति, साझी संस्कृति और कुर्बानी का पैग़ाम

Slide background

WELCOME

YOUR SHOP NAME

SHOP TITLE

Slide background
Slide background
Slide background

WELCOME

YOUR SHOP NAME

SHOP TITLE

Share with
Views : 41
बीबीएन,बीकानेर, 7 जून। त्याग, समर्पण और साझी विरासत के प्रतीक पर्व ईद-उल-अजहा को बीकानेर में पारंपरिक उत्साह, आपसी सौहार्द और धार्मिक श्रद्धा के साथ मनाया गया। शहर की प्रमुख ईदगाह में भारी संख्या में लोग एकत्र हुए, जहां शहर काजी शाहनवाज हुसैन ने ईद की नमाज अदा करवाई। इसके उपरांत ईदगाह कमेटी के अध्यक्ष हाफिज फरमान अली ने खुतबा पेश करते हुए त्यौहार की रूहानी अहमियत पर प्रकाश डाला।
नमाज के बाद सामूहिक दुआ की गई और सलातो-सलाम पेश किया गया। आम नागरिकों ने शहर काजी और हाफिज साहब से मुसाफा कर ईद की मुबारकबाद दी। इस मौके पर प्रशासन और सामाजिक क्षेत्र की कई प्रमुख हस्तियां भी मौजूद रहीं। पुलिस अधीक्षक काविंद्र सिंह सागर, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सौरभ तिवारी, सीओ सिटी श्रवण दास सन्त समेत पूर्व महापौर हाजी मकसूद अहमद, कांग्रेस नेता मदन मेघवाल, सेवादल उपाध्यक्ष कमल कल्ला, युवा कांग्रेस के मोहम्मद शोएब, इस्माइल खिलजी, संतोष रंगा, शाकिर चोपदार, ओमप्रकाश लोहिया व अनवर अजमेरी आदि ने आमजन को ईद की बधाई दी। कमल कल्ला ने इस मौके पर कहा कि "ईद-उल-अजहा कुर्बानी का पर्व है। हमें केवल जानवर की नहीं, नफरत, घृणा और मनमुटाव की भी कुर्बानी देनी चाहिए, ताकि देश प्रेम, भाईचारे और अमन की राह पर आगे बढ़े।"
हाजी मकसूद अहमद ने कहा, "ईद-उल-अजहा हजरत इब्राहीम अ.स. की सुन्नत है और यह पर्व हमें सिखाता है कि अल्लाह की राह में न सिर्फ जानवर, बल्कि घमंड, बुराई, झूठ, धोखा, ग़ीबत, और नफ़रत जैसी बुराइयों की भी कुर्बानी दी जानी चाहिए।" बीकानेर ने एक बार फिर यह साबित किया कि पर्व केवल परंपरा नहीं, समाज की साझी चेतना और समरसता के अवसर होते हैं।


---
error: कॉपी नहीं होगा भाई खबर लिखना सिख ले