मास्को की नई कूटनीति: RIC के बहाने चीन-भारत के बीच पुल बनने की कोशिश

बीबीएन, नेटवर्क, 11 जून। गलवान संघर्ष के बाद भारत-चीन संबंधों में आई कड़वाहट ने RIC (रूस-भारत-चीन) त्रिपक्षीय मंच को लगभग निष्क्रिय कर दिया था। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और अविश्वास की बढ़ती खाई ने त्रिपक्षीय सहयोग की संभावनाओं को कमजोर किया। लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद रूस और चीन की नजदीकी के बीच अब मास्को इस मंच को पुनर्जीवित करने की दिशा में सक्रिय होता दिख रहा है।
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हाल ही में भारत को 'विश्वसनीय साझेदार' करार देते हुए RIC को फिर से शुरू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उनका दावा है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर "काफी" प्रगति हुई है, जो त्रिपक्षीय संवाद को पुनः सक्रिय करने के लिए अनुकूल समय है।
रूस की सक्रियता के पीछे की वजहें
लावरोव के मुताबिक, पश्चिमी देशों — विशेष रूप से अमेरिका और NATO — पर भारत-चीन संबंधों में तनाव बढ़ाने का आरोप लगाते हुए, उन्होंने 'फूट डालो और राज करो' की रणनीति की आलोचना की है। रूस का मानना है कि क्वाड और AUKUS जैसे गुट भारत को चीन-विरोधी ध्रुव में खींचने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे RIC जैसे मंच का पुनरुद्धार संतुलन बहाल कर सकता है।
RIC के पुनरुद्धार में मास्को की रुचि क्यों?
पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक भू-राजनीति में तेज़ बदलाव आए हैं। रूस, भारत और चीन को लेकर RIC मंच को फिर से प्रासंगिक बनाने की एक सोची-समझी पहल हो रही है। मास्को में '2050 भविष्य का मंच' को संबोधित करते हुए लावरोव ने RIC को यूरोशियाई ढांचे में बहुध्रुवीय संतुलन के प्रयास का पहला कदम बताया।
हालांकि प्रश्न यह भी है: क्या RIC का पुनर्गठन वाकई भारत-चीन संबंधों को सामान्य करने में सफल हो पाएगा? क्या यह रूस की रणनीतिक ज़रूरत है या वैश्विक शक्ति-संतुलन की एक मजबूरी?
RIC: एक ऐतिहासिक दृष्टि
1990 के दशक के अंत में RIC की शुरुआत उस समय हुई थी जब रूस के तत्कालीन विदेश मंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने इसे अमेरिका-केंद्रित व्यवस्था के विरोध में एक वैकल्पिक ध्रुव के रूप में प्रस्तावित किया था। उद्देश्य था — तीनों देशों के साझा हितों को बढ़ावा देना और बहुपक्षीय सहयोग को मज़बूत करना। बाद में यह मंच ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे अन्य बहुपक्षीय मंचों से भी जुड़ता गया।