DRDO विकसित कर रहा लंबी दूरी की स्वदेशी मिसाइल प्रणाली

बीबीएन, नेटवर्क, 7 जून। भारत की वायु सुरक्षा प्रणाली को और सशक्त करने की दिशा में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 'प्रोजेक्ट कुशा' नामक इस स्वदेशी रक्षा परियोजना के तहत, देश अब लंबी दूरी तक मार करने वाली अत्याधुनिक सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (SAM) विकसित कर रहा है, जो न केवल भारतीय वायुसेना बल्कि नौसेना के लिए भी गेम-चेंजर साबित हो सकती है।
रक्षा सूत्रों के अनुसार, ‘प्रोजेक्ट कुशा’ की प्रमुख विशेषता इसकी यह क्षमता है कि यह अत्यधिक वेग से आने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को भी हवा में ही नष्ट कर सकेगी। मैक 7 (यानी ध्वनि की गति से सात गुना) की रफ्तार से चलने वाली दुश्मन की एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों (ASBM) को निष्क्रिय करने की इसकी क्षमता, भारत को वैश्विक सुरक्षा मानकों की नई पंक्ति में खड़ा करती है।
वायुसेना और नौसेना दोनों को मिलेगा लाभ
'कुशा' परियोजना को तकनीकी रूप से विस्तारित रेंज वायु रक्षा प्रणाली (ERADS) या प्रोग्राम लॉन्ग रेंज SAM (PGLRSAM) के रूप में भी जाना जा रहा है। यह सिस्टम मौजूदा MR-SAM (80 किमी) और रूसी S-400 ट्रायम्फ (400 किमी) के बीच की रणनीतिक दूरी को भरने का कार्य करेगा। इस प्रणाली में तीन प्रकार की इंटरसेप्टर मिसाइलें शामिल होंगी:
M1: 150 किमी की रेंज
M2: 250 किमी की रेंज
M3: 350 किमी की रेंज
इन सभी को वर्ष 2028–2029 तक भारतीय सेना में शामिल किए जाने की योजना है। विशेष रूप से M2 मिसाइल का नौसेना संस्करण समुद्री सुरक्षा के लिहाज से अहम माना जा रहा है, जो आने वाले समय में युद्धपोतों को मिसाइल हमलों से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
आधुनिक तकनीक से लैस, पूरी तरह स्वदेशी
प्रोजेक्ट कुशा की मिसाइलें एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) रडार सीकर से युक्त होंगी, जो रेडियो फ्रिक्वेंसी और इन्फ्रारेड गाइडेंस दोनों तकनीकों का उपयोग करेंगी। इससे इन्हें उच्च गति पर आने वाले लक्ष्यों को भी अधिक सटीकता से भेदने की क्षमता मिलेगी। फिलहाल, M1 इंटरसेप्टर मिसाइल निर्माण चरण में है और अगले 12 से 18 महीनों में इसके परीक्षण की संभावना जताई गई है। यह मिसाइल DRDO की आकाश-एनजी तकनीक पर आधारित होगी और लगभग मैक 5.5 की गति तक पहुंच सकेगी।
बहुआयामी खतरों से सुरक्षा
DRDO के वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्रणाली भविष्य के युद्ध परिदृश्यों के अनुरूप तैयार की जा रही है। यह न केवल स्टील्थ विमानों, क्रूज़ मिसाइलों और मानव रहित हवाई यानों से रक्षा करेगी, बल्कि प्रिसिशन-गाइडेड गोला-बारूद जैसी आधुनिक चुनौतियों से भी प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम होगी।
स्वदेशीकरण की दिशा में बड़ा कदम
‘प्रोजेक्ट कुशा’ न केवल देश की रणनीतिक सुरक्षा को नया आधार देगा, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी मजबूती प्रदान करेगा। विश्लेषकों का मानना है कि DRDO की यह पहल आने वाले समय में रक्षा निर्यात की दिशा में भी भारत को नई ऊंचाई तक ले जा सकती है।